शुक्रवार, 19 जून 2009

नारी के प्रति द्र्स्टीकोण बदलिए....?


नारी को पददलित बनाकर मनुष्य ने क्या पाया ?
नारी क्या सदा पददलित ही बनी रहेगी ?
अशिक्षा, घर की चहारदिवारी का कारावास, पर्दा-प्रथा, बहुप्रजनन, कामिनी और रमणी के रूप में साहित्य तथा कला में चित्रण आदि कितने ही कुचक्र हैं जो नारी को छलने के लिए सदियों से चले आ रहे हैं और नित नये ढंग से निकलते जा रहे हैं। इन कुचक्रों के कारण दिनोंदिन नारियों की होती जा रही दुर्दशा को देखकर यह विचार आता है कि पुरुष कहीं उसकी अपार क्षमता और असंदिग्ध योग्यता को देखकर खौफ तो नहीं खा गया है और उसकी क्षमताओं तथा योग्यताओं को विकसित न होने देने के लिए तरह-तरह के षड्यन्त्र रचने में अपनी बुद्धि का प्रयोग करने लगा है ?
नाना विधि बन्धनों और प्रतिबन्धों के कारण यह कहना पड़ रहा है कि पुरुष का व्यवहार नारी के प्रति एक शत्रु जैसा रहा है और वह उसे मोहक षड्यंत्रों में फँसाकर अबोध तथा अबला बनाये रखने में सफल हुआ हो। अच्छा तो यह है कि उसे इन कुचक्रों में न फँसाया जाय और उसकी क्षमताओं तथा योग्यताओं को विकसित होने देकर समाज की गाड़ी को प्रगति के पथ पर दौड़ाया जाय, पर जहाँ झूठे अहं का सवाल है, वहाँ समाज को कितनी हानि उठानी पड़ रही है, यह विचार करने का समय किसके पास है ?

उँगलियों पर गिने जाने योग्य है, उन महिलाओं की संख्या, जिन्होंने अपनी क्षमताओं की पहचान और उत्पन्न की गयी बाधाओं की परवाह किये बिना आगे बढ़ीं, पर अधिकांश 99 प्रतिशत कहा जाय तो अत्युक्ति न होगी कि महिलाएँ दीन-हीन अवस्था में हैं, अबला है, आश्रिता हैं, दासी हैं और एक विचारक के तीक्ष्ण शब्दों में ‘सुरक्षित वेश्या’ है।
नारी की क्षमता को अवरुद्ध रखने में सबसे बड़ा प्रतिबन्ध है-शिक्षा का। अशिक्षा नारी के लिए एक षड्यन्त्र ही है और वह षड्यन्त्र इतने सुन्दर ढंग से रचा गया है, उसके पीछे इतने बढ़िया तर्क दिये गये हैं कि पुरुष की नियत पर सन्देह करना ही पड़ता है। उदाहरण के लिए कहा जाता है-‘‘नारियों के लिए पढ़ने की क्या जरूरत, उन्हें कोई नौकरी-चाकरी तो करनी नहीं, न किसी घर की मालकिन बनना है। उसके लिए तो घर ‘गृहस्थी’ का काम सीख लेना ही पर्याप्त है।’’

अहा ! कितना सुन्दर तर्क है, पर क्या शिक्षा प्राप्ति का एकमात्र उद्देश्य नौकरी करना ही है। लोग जानते हैं कि आजकल पढ़े-लिखे लोगों की संख्या इतनी अधिक है कि आज जो बच्चे पढ़ रहे हैं और जब पढ़कर बड़े हो जायेंगे, तब उनके लिए नौकरी मिल जायेगी इसकी दस प्रतिशत भी उम्मीद नहीं है। पढ़-लिखकर नौकरी करने का प्रचलन तो ब्रिटिश काल में हुआ, उससे पहले क्या सभी लोग अशिक्षित थे ? बल्कि उस समय की शिक्षा ने जितना ज्ञान और जितना साहित्य दिया, उतना प्रगल्भ तथा उच्चस्तर आज के शिक्षा स्तर में कहीं दिखाई ही नहीं देता। प्राचीनकाल में कौन-सी नौकरियाँ थीं, कौन से विभाग थे ? कौन से पद थे ? जिन्हें प्राप्त करने के लिए लड़के और लड़कियों की शिक्षा पर समान रूप से ध्यान दिया जाता था।

‘‘किसी घर की मालकिन नहीं बनना है।’’ तर्क भी निराधार है। एक तो प्रत्येक कन्या को विवाह के बाद गृहिणी बनना पड़ता है और गृहिणी घर की मालकिन ही तो होती है। घर का संचालन, घरेलू कामकाजों को निबटाने में ही उतनी योग्यता और चतुरता की आवश्यकता पड़ती है, जितनी कि किसी व्यवसाय के प्रबन्ध में। अशिक्षित नारी की गृह-व्यवस्था और शिक्षित नारी की गृह-व्यवस्था में जमीन आसमान का अन्तर देखा जा सकता है और यह कहना भी अनुपयुक्त होगा कि घर का काम-काज सीख लेना ही पर्याप्त है, क्योंकि घरेलू काम-काज निबटाने में ‘‘मुश्किल’’ से चार-छह घण्टे लगते हैं। इसके बाद स्त्रियाँ फालतू हो जाती हैं। यदि वे पढ़ी-लिखी हों तो अपने फालतू समय का उपयोग ज्ञानवर्द्धन में कर सकती है अन्यथा खाली बैठी दो-चार स्त्रियाँ गपशप और दूसरों की भलाई-बुराई में ही अपना समय नष्ट कर डालती हैं। यदि कन्या-शिक्षा नारी-शिक्षा का समुचित प्रबन्ध किया जाय तो उसका लाभ केवल स्त्री को ही नहीं पूरे परिवार को मिलेगा। वह बच्चों का ढंग से पालन-पोषण कर सकती हैं, उनके व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए संस्कार डाल सकती हैं, घरेलू मामलों में अपनी बुद्धि से सही परामर्श दे सकती हैं।

द्वारा - गायत्री परिवार से संकलन

अनामिका पंडागरे
सुपुत्री
अनीता अनिल महाजन ( पंडागरे )
Administer
http://www.lonarikunbi.in
!!! लोणारी कुनबी वेबपरिचायिका !!!

4 टिप्‍पणियां:

  1. आज जमाना नारी का है, इसलिये लोगो को अपना नजरिया बदलना चाहिए, ब्लोगँ अच्छा लगा

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  2. aurat ko haashiye pe rakhne ka natizaa ham sab bhog rahen hain,faltaya ,,pura samaaj asurakshaa se ghiraa hai .aadhi dunia ki andekhi baki aadhi dunia chukaa rahi hai ,ham sab asurakshit hain.veerubhai1947.blogspot.com

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  3. achchi shuraat ki hai bhaai ,badhaai ho badhaaiveerubhai1947@gmail.com

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